अपना देश पराया Yogesh Bisht
अपना देश पराया
Yogesh Bishtआपसी फूट का हमने कैसा इनाम पाया,
दो सौ सालों से भी ज़्यादा, अपना देश पराया।
निज स्वार्थ जब भी देश हित से आगे होता,
धरती दुःख में जीती, आकाश वहाँ का रोता।
छोटे फायदे का हमने बड़ा नुकसान चुकाया,
दो सौ सालों से भी ज़्यादा, अपना देश पराया।
एकता की शक्ति को जब भी कोई भूला,
देश का ऐसा हश्र देख दुश्मन का सीना फूला।
ऊँच नीच और जात पात ने हम सबको उलझाया,
दो सौ सालों से भी ज़्यादा, अपना देश पराया।
लालच के बहकावे में जब हम आते,
वर्तमान के साथ-साथ भविष्य अपना गँवाते।
अपनी किस्मत को हमने गैरों के हाथ लुटाया,
दो सौ सालों से भी ज़्यादा, अपना देश पराया।
देश में पनपती जब जयचंदों की टोली,
छाती में तब लगती भारत माँ को गोली।
गद्दारों की करतूतों का पड़ा सभी पर साया,
दो सौ सालों से भी ज़्यादा, अपना देश पराया।
आपसी फूट का हमने कैसा इनाम पाया,
दो सौ सालों से भी ज़्यादा, अपना देश पराया।