कट्टी हो गई RAHUL Chaudhary
कट्टी हो गई
RAHUL Chaudharyबाज़ार में दिलों के
इक शाम मिला उनसे,
दीदार हुआ इक खुमार से,
घूमकर नज़र चेहरे पर उनके।
ज़ुबां से बन शायरी,
लफ़्ज़ों में इश्क़ पनपने लगी,
खुद ब खुद मेरे आस पास
उनकी खुशबुएँ महकने लगी।
दीदार हर रोज़ शामो सुबह
आँखों में चमक सा,
नशा चढ़ा मदमस्त सा
साँसों में बहे महक सा।
मुलाकातें बढ़ी किसी तरह
शाम ए वक़्त गुज़रने लगा,
जागे अरमाँ हौले-हौले
इश्क़ की लहर का उफान बढ़ा।
खुमार यूँ बेशुमार सा
चढ़ा इन परिंदो में,
यूँ दूर तक आसमां में
उड़े हवाओं के संग।
माहौल तो बना रहा
इश्क़ और प्यार का,
रंग तो भरा रहा
रूह के एहसास का।
इश्क़ बनकर कुछ शब्द
दिल से ज़ुबां का रुख़ किए,
धड़कते दिल से दो साँस
सीने में यूँ रुखसत हुए ।
एक शाम एक मोड़ पर
सामना तीसरे का,
जुड़ गया टूटकर साँस से
दामन नए खुमार का।
दस्तक से और के
इस कदर मुँह मोड़ लिया,
दो जान एक साँस से
जुदा हुए हर तार बेजार कर।
भूलकर वो दौड़ आया
इस नए बने रिश्ते में,
चमक सी आँख में बसा
दीदार इस शख्स का।
जो गुज़ारे लम्हे सब
अग्नि में दहक कर जल गई,
लिए कसमें जिसके संग
उस शख्स से कट्टी हो गई।
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कुछ लोगों में आकर्षण को लेकर कुछ कमियाँ होती हैं जिससे उनके कहीं संलग्न होने के बावजूद अन्य स्रोतों के प्रति अचानक सा झुकाव उत्पन्न होने लगता है। रिश्तों के पहलू से देखें तो वो ईमानदारी से भटक कर दूसरे हाथ को पकड़ लेते हैं और पुराने से मुँह मोड़ लेते हैं।