खाली दिमाग शैतान का घर Anupama Ravindra Singh Thakur
खाली दिमाग शैतान का घर
Anupama Ravindra Singh Thakurसूरज निकला, हुआ सवेरा,
प्रचंड आलस ने मुझको घेरा,
उठ बैठी मैं बिस्तर पर,
मन में यह विचार कर,
जो होगा देखा जाएगा,
आज तो यह शरीर आराम पाएगा।
पड़े हुए थे कई काम,
पर शरीर को चाहिए था आराम,
बहुत देर तक सुस्ताने पर,
बच्चों को लगा माँ बैठ गई धरने पर,
पति हुए थोड़े नाराज,
पर कैसे करते मेरे सामने आवाज़।
तुरंत एक एक्शन प्लान बनवाया,
होटल से भोजन मंगवाया,
मेरे आनंद का न था कोई ठिकाना,
भोजन कर फिर से बिस्तर पर था जाना,
बैठ बिस्तर पर मैं यह सोचने लगी,
अच्छा हो अगर हो हर रोज ऐसी,
जिंदगी सो कर उठना, उठकर खाना,
खा कर फिर बिस्तर पर लेट जाना।
तभी कमर में हल्का दर्द होने लगा,
मस्तिष्क भी उसका साथ देने लगा,
अचानक से सर चकराने लगा,
सबकुछ घूमता नज़र आने लगा,
लग रहा था जैसे मैं हूँ बीमार,
क्यों आ रहे थे ऐसे कुविचार?
तभी मेरे अंतर्मन से आवाज यह आई,
खाली बैठने की सजा तुमने है पाई,
चलो उठो, कुछ तो कर लो आलस को त्यागकर,
जानते नहीं खाली दिमाग शैतान का घर,
जब रहोगे किसी काम में हरदम व्यस्त,
तभी सदा पाओगे खुद को स्वस्थ।