लंगोट धारी बापू  Anupama Ravindra Singh Thakur

लंगोट धारी बापू

Anupama Ravindra Singh Thakur

लंगोट धारी ने भी क्या कमाल कर दिया,
दो सौर्षों से टिके हुए गोरों को निकाल बाहर कर दिया।
 

जर्जर शरीर लाठी के सहारे चलता था,
पर इंग्लैंड में बैठा अंग्रेज भी इनसे डरता था।
 

कभी न हाथ में बंदूक उठाई,
कभी न कोई गोली चलाई,
बस अहिंसा की उंगली थाम कर,
गोरों से यह धरती खाली करवाई।
 

आसहयोग का आह्वान कर
सत्य की मशाल जलाई,
देश भर में लोगों ने
विदेशी चीजों की होली जलाई।
 

निर्बल तन पर कैसे इतना ओजस्वी स्वर था,
करो या मरो के आह्वान पर
पूरा भारत मरने को तत्पर था।
 

स्तब्ध खड़ा था अंग्रेज
देख लंगोट धारी की यह अद्भुत शक्ति,
बिना किसी सेना के ही उसने
की अंग्रेजों की दुर्गति।
 

मान गए वे भी अब
यह है कोई अवतरित दैवीय शक्ति,
कोई विकल्प नहीं बचा था अब
दे दी उन्होंने भारत को मुक्ति।
 

जन -जन में जल्लोष हुआ,
राष्ट्रपिता का उद्घोष हुआ,
सत्य अहिंसा का संदेश देकर,
लंगोट धारी अंत में विलीन हुआ।
 

नतमस्तक है यह धरती
बापू आपके चरणों में,
भारत माँ का भक्त आप जैसा कोई
हुआ ना होगा, आने वाले वर्षों में।

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