विरह  guddu singh kundan

विरह

guddu singh kundan

तन झुलस गया आँखें डबडबा गईं,
पतझड़ बीत चुका ग्रीष्म ऋतु भी आ गई,
टकटकी लगाए निहारती उस पथ को,
जहाँ से तुम्हें पाने की कोई उम्मीद नहीं,
न जाने वो कौन सी घड़ी थी,
जिस वक्त मेरा दिल लहूलुहान हुआ।
 

ठहर जा ऐ बेखबर वक्त कुछ पल के लिए,
उसकी खुशबू मेरे मन में समा जाने दे,
क्या पता इन लबों पर कभी मुस्कराहट ही न फैले,
मौत ही आखिरी उम्मीद है अब मुस्कुराने की,
हज़ारों सुईयाँ चुभा दो इस बेजान जिस्म में,
दर्द की अब कोई गुंजाइश मत रखना।
 

विरह की दहकती आग में,
अरमानों की बली चढ़ गई,
जिसकी आस में सपने संजोए,
साथ निभाने से पहले ही वह बेवफा निकला,
शिकायत नहीं मुझे उसकी मोहब्बत से,
काश वो ज़िन्दगी भर साथ निभाने का वादा न करता।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1197
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com