बेबसी RAHUL Chaudhary
बेबसी
RAHUL Chaudharyबेरुखी ज़र्रे भर तेरी
बेबसी का हक अदा बस
बेगानी अंजानी हवा
ये शोर क्यों अनकहा।
अश्क क्यों किस तरह का
गुरूर ये साहिब क्यों
कभी ज़मीन पर हम हैं
कभी जमीं हम पर है।
खामोश है दिल
सुनने का काम लेता है,
आवाज़ होती गर
बगावत के पैमाने टूटते।
शोर गर झकझोरती है
खामोश ये ज़ुबां होती है
मुस्कुराहटें उगेरती है
इन उदासी के आईने में।
इबारतें कोई लिखे
है अधूरे बिन तेरे
सिमटता हूँ समुद्रों से
फैलकर बह सकता नहीं।
आदतें खराब हो चली
बेबसी है दर्द सा
जी रहे औरों के लिए
मुस्कुराते चेहरों से।
बेबसी का आलम
फूटता है तरसती निगाहों में
दीदार को जब प्यासे
सूखे झील से ये आखें।