मैं संविधान बोल रहा हूँ नदीम आतिश
मैं संविधान बोल रहा हूँ
नदीम आतिशमैं भारत के कानून का परिधान बोल रहा हूँ,
सुधारो मुझको मैं हिन्दुस्तानी संविधान बोल रहा हूँ।
गुब्बारे पतंगें ना उड़ा सकते, बच्चों की ये कैसी लाचारी है,
15 अगस्त, 26 जनवरी के दिन ये मेरी कैसी अत्याचारी है,
आज मैं भी बच्चों की जुबान बोल रहा हूँ,
सुधारो मुझको मैं हिन्दुस्तानी संविधान बोल रहा हूँ।
सब राज्य एक जैसे ही हैं अलग है यहाँ कश्मीर,
हर दिन अपनी जान गँवाते यहाँ कई वीर,
सरहद पर खड़े वीरों की मैं जान बोल रहा हूँ,
सुधारो मुझको मैं हिन्दुस्तानी संविधान बोल रहा हूँ।
एक तरफ तो लोगों को समानता का कानून दिया है,
जात-पात पर फिर क्यों आरक्षण का नून दिया है,
लोगों की लाचारी का मैं इंसान बोल रहा हूँ,
सुधारो मुझको मैं हिन्दुस्तानी संविधान बोल रहा हूँ।
विस्तृत तो कर दिया मुझको लेकिन बहुत कमियाँ हैं,
बिगड़ी हुई मेरी बहुत सारी छवियाँ हैं,
ऐ हिंदी मै तेरा अभिमान बोल रहा हूँ,
सुधारो मुझको मैं हिन्दुस्तानी संविधान बोल रहा हूँ।