इश्क़ का आसेब Huma Shah
इश्क़ का आसेब
Huma Shahबरामदे के सतून और उसके पार कच्चा आँगन,
आंगन में अमरुद, मेहँदी और अनार के दरख्त,
दरख्तों पर खुशबू महकती हुई,
और महकती खुशबुओं पर
आसेब और सेहर का अंदेशा।
बचपन की यादों की एक याद,
जैसे-जैसे बड़े होते गए
आसेब वाली बातें, कहानियाँ लगने लगी,
और डर हँसी में तब्दील होता गया।
लेकिन पिछले कुछ सालों से मुझे लगने लगा है,
कि दरख्तों वाला जिन्न मुझ पर आ गया है,
मेरी रूह में वहशते हैं,
मेरे दिल में गहरे सन्नाटे हैं,
मेरी आँखों में आसेब उतर आया है।
मेरे वजूद से इश्क़ की खुशबु आती है,
बिलकुल वही खुशबु जो अनार
और मेहँदी के पेड़ों से आया करती थी,
लोगों के लाख समझाने के बावजूद
जैसे हम दौड़-दौड़ कर दरख्तों पर चढ़ जाते थे,
अब भी सबकी नसीहतों को नकार कर
तुम्हारे दिल की हवेली पर
क़ब्ज़ा करने की जद्दोजेहद जारी है।