तुझमें मुझमें छुपा सा है कोई Sanjay Gupta
तुझमें मुझमें छुपा सा है कोई
Sanjay Guptaतुझमें मुझमें छुपा सा है कोई,
कैसे कह दूँ, वो बुरा सा है कोई।
यूँ तो बनती नहीं कोई दास्तान हमारी,
हो रहे हैं बदनाम, कर रहा है वही।
इन आखों के पीछे रहता है कोई,
झुकाता गिराता है, ये पलकें कोई।
यूँ तो शरम ओ हया से बँधी मोहब्बत,
तोड़ने को उसको, बहका रहा है वही।
हम दोनों के दरम्यान, छुपा सा है कोई,
खेल मिलन जुदाई का, खिलाता है कोई।
जुदा कभी ना हों, चाहत दोनों की एक,
मिटें कैसे ये दूरियाँ, बढ़ा रहा है वही।