हम और वनवासी  Kumar Harsh

हम और वनवासी

Kumar Harsh

सुना है वनवासियों के चाँद से गहरे रिश्ते हैं,
उनकी ज़मीन और आसमान तो हमने छीन ही लिया,
चलो चाँद भी छीन लाते हैं।
 

उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके
अपने घरों में लगा लेगें,
शायद इससे थोड़ी खुशी मिल जाए हमें।
 

पर आश्चर्य होता है वो वनवासी खुश कैसे हैं?
क्या पहाड़ियों और तालाबों ने ज़मीन दे दी उन्हें?
या पेड़ों और पत्तों ने आसमान दे दिया?
 

हम चाँद छीन भी लें तो
जुगनू की रोशनी में त्यौहार मना लेंगे वो,
इतना सबकुछ करने के बाद भी,
हम उनकी खुशी छीनकर
आपस में बाँट नहीं सकते।
 

शायद इसलिए की वनवासियों के
आपस में भी गहरे रिश्ते हैं,
हम चाँद बाँटते हैं, वो खुशियाँ।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
968
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com