गुस्ताख नज़रें RAHUL Chaudhary
गुस्ताख नज़रें
RAHUL Chaudharyयूँ मोड़ पर टकरा गईं
कमबख्त दो निगाहें गुस्ताख,
छुआ नहीं लफ्ज़ को
फिर भी पढ़ लिए अल्फ़ाज़।
रूह तक उतर गए बेजुबां
अनकहे मुस्कुराते साज,
धड़क उठी गुनगुनाती
सरगर्मियों की आवाज़।
बिन कहे सुन लिए दिल ने
इश्क़ भरे पैगाम,
बिन कहे कह दिए होंठ
सोचा नहीं अंजाम।
चाँद अब उतर गया
जमीं पर धूप को सुलाकर,
मुस्कुराकर फैला दिया
चाँदनी को तेज़ कर।
नज़र-ए-गुस्ताख ने
इश्क़ की लौ जलाकर,
बाँध लिया दो दिलों को
गुस्ताखी के जोर पर।