अपनी होगी वही दीवाली  B Seshadri "Anand"

अपनी होगी वही दीवाली

B Seshadri "Anand"

दीप जलाऊँ मैं कैसे, बेचैन बड़ा है मेरा मन,
दुखियों की बहती अश्रुधारा, करती मेरी आँखे नम।
 

लाख बधाई धनवानों को, जिनकी रोज दिवाली है,
दीन-दु:खी के घर में होता, दीवाली पर भी मातम।
 

अट्टालिकाओं ने छीना है, निर्धन का उजियारा भी,
सजी-धजी ऊँची मीनारें, पर छप्पर में पसरा तम।
 

दो जून की मिले ना रोटी, वह क्या जाने दीवाली,
भूख के मारे कब मर जाए, राह खड़े तकता है यम।
 

तानसेन से कह दो जाकर, दीप राग को बंद करे,
अन्न राग की तान छेड़कर, आज मिटाए सारे गम।
 

बाहर कितने दीप जले हैं, अन्धकार मन के अंदर,
दुखियों के दुख हरकर देखो, खिल जाएगा अंतर्मन।
 

अपनी होगी वही दिवाली, आज सभी से कहता हूँ,
संताप जगत के मिट जाएँ, खिलें सभी के मन उपवन।

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