तुम चाहो तो बहार आ जाए ! Ravindra Kumar Soni
तुम चाहो तो बहार आ जाए !
Ravindra Kumar Soniतूम चाहो तो बहार आ जाए,
चाँद के घर सौगात आ जाए,
मौन हैं सितारे सदियों से,
तुम चाहो तो चाँदनी का सैलाब आ जाए।
हो जाए सवेरा फिर धूप आ जाए,
इस पतझर की बस्ती में फूल आ जाए,
हो रौशन दीप अंधेरों में,
तुम चाहो तो रौशनी का सैलाब आ जाए।
गीतों को मेरे सरगम मिल जाए,
सुरों की सरस रागिनी खिल जाए,
हो जाएँ किनारे लहरों के आशिक,
तुम चाहो तो सुरों का सैलाब आ जाए।
उफ़न कर रूप का दरिया सागर का नूर हो जाए,
चमकती धूप नज़रों से सुहानी शाम हो जाए,
खिल जाएँ पुष्प बहारो में,
तुम चाहो तो रूप का सैलाब आ जाए।