फिर किस बात का रोना है Sanjay Gupta
फिर किस बात का रोना है
Sanjay Guptaतुमने देखा, कुछ देखा, अगर देखा वो एक सपना है,
मुस्कुराओ, तुम मुस्कुराओ, वही तो एक अपना है,
देख ही ली हैं जब हकीकतें इस जमाने की "देवेश"
किस बात से डरते हो, फिर किस बात का रोना है।
अश्क बह जाएँ आँखों से, वही तो असली पूजा है,
कहाँ ढूँढे हम अपनों को यहाँ हर कोई तो दूजा है,
लेकर बाहों में, पीठ में घोंप देते हैं यहाँ खंजर,
चौकन्ना रहना है यहाँ तुमको, मंजर ये भी पुराना है।
रोए थे माँ की गोदी में, शब्द वही तो थे तुम्हारे अपने,
लोरी सुनाई फिर जो उसने, गीत वही तो थे अपने,
कानों मे घुले हैं जहर दुनिया वालों की बातों से फिर तो,
करो अनसुना उन सबको, जिनका काम ही सुनाना है।
ज़िन्दगी में हैं अभी असली इम्तिहान कई सारे बाकी,
मुठ्ठी भर जमीन ही तो अभी तक तुमने है यहाँ नापी,
टकराकर हर बार मौत से जब जी उठोगे फिर से तुम,
ताकत होगी हौंसलो की आसमान में उड़ जाना है।
जियो तो ऐसे जियो, बन जाए यहाँ कुछ हस्ती तुम्हारी,
तूफ़ान बनना होगा तुमको, हवाओं की आती नहीं बारी,
अगर तकते रहोगे यहाँ वहाँ इस निष्ठुर जमाने में,
किस्मत के भरोसे रहना यहाँ खुद को ही गँवाना है।