साँस और आस Sanjay Gupta
साँस और आस
Sanjay Guptaसाँस और आस का
एक रिश्ता है अजीब,
दोनों ज़रुरत एक दूजे की
दोनों रहते हैं करीब।
आस टूट जाए तो
साँस लगती है बैठने,
साँस ना टूटे कभी
दिल को यही आस रहती है।
हर साँस जगाती है
आशाओं के अरमान,
पूरा करने को सबको
ज़िन्दगी बसर करनी होती है।
आशाएँ थी बहुत ज्यादा
या साँसें पड़ रही कम,
साँसें तो साथ हैं
आशाएँ तोड़ रही दम,
ज़िन्दगी की यह पहेली
सदा अबूझ ही रहती है।