अहसास अहसासों के Ashutosh Shukla
अहसास अहसासों के
Ashutosh Shuklaउठ रही थी अर्थी ज़िंदगी की,
चार कन्धों में से एक कंधा ख़ुद मौत का था,
बचे तीन का बँटवारा अधूरी इच्छाओं,
टूटे सपनों और ज़रूरतों का था।
ज़िंदगी की छाती पर सर पटक-पटक कर
रोने वाला सर पछतावे का था,
समझ ना पड़े ऐसी बड़-बड़ कर
आँसू बहाने वाली आँखे क़दर की थी,
ख़ुद की छाती पीटने वाले हाथ
पूरे ना हुए कामों के थे,
और आस-पास झूठा ढाँढस देने
जमा हुई भीड़ ग़ैरों की थी।
सुन्न पड़ा रंगहीन चेहरा यारी का था,
और मोहब्बत का भी दिल भारी था।
चल कर जाते पैर जज़्बातों के थे,
शिकायत करते लब ज़िम्मेदारी के थे।
हिसाब लगाती उँगलियाँ की गई मौजों की थी,
किससे क्या-क्या कहना बाक़ी राह गया
ये क़िस्से अल्फ़ाज़ो के थे!
पर इन सबके बीच कोने में सभी से दूर
सुबकने वाली ख़ुद ही से दूरी थी!
सब तो अपने-अपने मतलबों के लिए मौजूद थे,
पर दूरी हमेशा की तरह वहीं खड़ी थी,
वो चीख़-चीख़ कर कहना चाहती थी पर कह ना पाई...
"ऐसा फिर कभी भूल कर मत करना,
दूसरों को ख़ुश करते-करते
बेवक़ूफ़ी है ख़ुद को ख़ुद से दूर करना।"