मैं अकेला Krishn Upadhyay
मैं अकेला
Krishn Upadhyayमैं अकेला मैं अकेला मैं अकेला हूँ यहाँ पर,
कल थे मेरे जो भी अपने अब ना जाने है कहाँ पर
मैं अकेला मैं अकेला मैं अकेला हूँ यहाँ पर।
मेरी थी उनको ज़रूरत तब तो मेरे साथ थे,
राहें थी मुश्किल भरी पर हाथों में भी हाथ थे,
अब जो पूरी हुई ज़रूरत सब परिंदे उड़ गए,
चेहरे थे मेरी तरफ़ जो वो भी पीछे मुड़ गए,
चेहरे थे मेरी तरफ़ जो वो भी पीछे मुड़ गए।
जाना है आकाश में एक दिन मिलेंगे सब वहाँ पर,
मैं अकेला मैं अकेला मैं अकेला हूँ यहाँ पर,
कल थे मेरे जो भी अपने अब ना जाने है कहाँ पर।
ए खुदा तेरे शहर में चेहरों पे पर्दा पड़ा,
मन के काले हैं जो जग भी उन सभी के संग खड़ा,
बोल हैं मिशरी से मीठे किंतु मन के चोर है,
चेहरे हैं उजले मगर भीतर घटा घन घोर है,
चेहरे हैं उजले मगर भीतर घटा घन घोर है।
आज रोशन है जगह जो गहराएगा तम वहाँ पर,
मैं अकेला मैं अकेला मैं अकेला हूँ यहाँ पर,
कल थे मेरे जो भी अपने अब ना जाने है कहाँ पर।
ठोकरें मुझको मिली हैं अपनों ने ठुकरा दिया,
पथ में जो भी साथ थे उसने मुझे गुमराह किया,
फ़िर उठूँगा मैं जमीं से कुछ नया कर जाऊँगा,
और रहेगा नाम जीवित मैं भले मर जाऊँगा,
और रहेगा नाम जीवित मैं भले मर जाऊँगा।
आऊँगा फ़िर मै वहीं दिल से पुकारोगे जहाँ पर,
मैं अकेला मैं अकेला मैं अकेला हूँ यहाँ पर
कल थे मेरे जो भी अपने अब ना जाने है कहाँ पर।