सोने दो Vijay Harit
सोने दो
Vijay Haritजीवन की आपाधापी में चैन से गर मैं सो जाऊँ,
नहीं उठाना सोने देना, नहीं जगाना मुझको तुम।
चहुँओर अंधकार है फैला, आशा की एक किरण नहीं,
घोर प्रदूषण, आतंकवाद जैसे दुश्मन रहे हैं घूम।
आबादी का अंत नहीं है, द्रुपद चीर सी बढ़ती है,
रोज़गार का पता नहीं है पर महंगाई बस चढ़ती है।
संस्कार भूल बैठे हैं सब, छोटे बड़े का भेद नहीं,
पाश्चात्य है, सब चलता है, किसी बात का खेद नहीं।
फैशन फास्ट-फूड में रम कर, स्वदेशी व्यंजन भूल गए,
रोज़ बदलते मोटर गाड़ी, पर भूखों को भूल गए,
न्यूक्लियर की होड़ लगी, सब विस्फोटक पर बैठे हैं,
मौत तो बस एक मिथ्या है, ये सोचकर शायद ऐंठे हैं !
हे ईश्वर! तुम ही आशा हो, चमत्कार दिखला दो कुछ,
विध्वंसक विकराल रूप धर, जग को राह दिखा दो तुम।
पापियों के सर्वनाश को चक्र सुदर्शन ले आओ,
अत्याचार अधर्म मिटाने, हे ईश्वर तुम आ जाओ।