अधूरी याद RAHUL Chaudhary
अधूरी याद
RAHUL Chaudharyकोई सँजोए लाख मगर
साथ कोई कितने सफर,
खिलखिलाते डगर
फीके हैं, बिन हमसफ़र।
तूफान हैं दफन सीने में
झकझोरने को,
एहसास की हर डोर को।
कैद कितने यादों के चित्र
आ रहे सामने फिर,
रूह छू रहे फिर भूले याद।
कदम का रुख मोड़ कर
चल रहे उल्टी दिशा,
अंश तेरे इन फ़िज़ाओं में
कर रही बयाँ तेरे निशां।
क्या ज़रूरी इन पलों का
बिन तेरे अब,
क्यों दे रही आवाज़ ये
एक बार फिर, अब तेरे बाद।
मौजूदगी तेरी
महसूस है अभी भी,
जाने क्यों
छू कर छिपती अभी भी।
मोड़ कर गुज़रा करूँ
रुख गलियों से तेरे,
बेखबर हूँ तुझसे अब
लिए कुछ अधूरी याद।