अनजानी धड़कनें  Ruchika Nath

अनजानी धड़कनें

Ruchika Nath

शाम होते ही मेरे पाँव खीचें चले जाते हैं मुझको मेरे घर की तरफ,
आम आदमी हूँ मैं, मेरे घर का पता ही मुझे मेरा पता लगता है।
 

घर का पता इतनी अच्छी तरह से याद है मुझे
कि आँखें बंद कर के भी ये रास्ते तय कर सकता हूँ मैं,
रोजमर्रा का ये सफर मैं बखूबी तय करता हूँ,
इस सफर के दौरान अक्सर कई वाक़ये पेश आते हैं,
पर मजाल है जो मैंने एक बार भी इन वाक़यों को अपने दिल के किवाड़ खड़काने दिये हों,
और मैं ये बताता चलूँ आपको कि मैं इंसान अच्छा हूँ,
पर महसूस थोड़ा कम करता हूँ।
 

फुर्सत ही कहाँ है अपने अलावा किसी और के दुःख दर्द सुनने की,
ईश्वर ने दिल और दिमाग दोनों बराबर जगह ही दिए हैं,
पर दिमाग का इस्तेमाल कर के ही तो मैं इतनी दूर तक आया हूँ,
और फिर दिल ने भी कोई खलल नहीं डाला,
धड़कनों के अलावा मैंने भी कहाँ, कोई काम लिया है इससे,
कल ही की बात है, दो छोटे बच्चे भूख से बिलख रहे थे और गुहार कर रहे थे,
सुना तो यक़ीनन सबने ही था पर ज़ज़्बातों के लिए वक़्त कहाँ से लाएँ।
एक बार को ऐसा लगा भी मुझे, कि इनकी कुछ मदद करनी चाहिए,
फिर मैंने भी वही सोचा जो सब सोचते हैं आखिर मैं ही क्यों?
और भी तो लोग हैं इस भीड़ में कुछ ना कुछ कर ही लेंगें।
 

अक्सर ही हम बस अपनी नब्ज़ टटोलते रहते हैं,
पर इस नब्ज़ ने हमें इतना कमजोर कर दिया है
कि इसे सिर्फ अपनी धड़कनों की पड़ी है,
वो अनजानी धड़कने चलती हो या रुक जाएँ,
इससे किसको फर्क पड़ता है।
 

हम बस दौड़ रहे हैं एक अंतहीन रेस के घोड़े हों जैसे,
ये हमारी कमअक्ली नहीं तो और क्या है,
हम में से ही कोई क्रूरता की हदें पार कर देता है,
पर हम हैं कि अपनी चुप्पी तोड़ने को तैयार ही नहीं,
और जब भी हमारी अंतरआत्मा हमसे सवाल पूछती है,
तो हमारा ये जो ईमान है, जो मेरे ख्याल से ईमानदार तो कतई नहीं है,
उसके पास एक तयशुदा जवाब है,
हम मसीहा थोड़े ही हैं हम तो इंसान हैं।
 

पर मसीहा भी तो हम में से ही एक होता है,
फर्क बस इतना है उसे अनजान लोगो की धड़कनों को सुनना आता है,
क्योंकि उसकी धड़कनों में वो शोरगुल नहीं,
जहाँ इंसानियत की आवाज़ बस दफ़्न हो के रह जाती हो।
 

आपको अपने इंसान होने का वास्ता,
अपने अंदर के शोरगुल से बाहर निकलें,
इस दुनिया को कोई मसीहा नहीं बल्कि
आपके अंदर की इंसानियत ही बचा सकती है।

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