चीनी का बोरा  DEVENDRA PRATAP VERMA

चीनी का बोरा

DEVENDRA PRATAP VERMA

लहजे में, फिजा में,
मिठास है घर में,
शीतल सुमन सुवास है
प्रभास है घर में।
 

ग़मों की घुड़दौड़ पर
नन्ही लगाम है,
सुबह सुहानी
मदमस्त शाम है।
 

हवा सम्हल जा
तुनकमिजाज है घर में,
पंख नहीं हैं मगर
परवाज़ है घर में।
 

नन्ही है नटखट
चिरैया सी है,
फुदकती आंगन में
गौरैय्या सी है।
 

मासूम से सवाल हैं
जवाब हैं घर में,
स्लेट है, कापी कलम,
किताब है घर में।
 

सिक्कों भरी गुल्लक है
इतवार का दिन है,
आज खिलौनों के
बाजार का दिन है।
 

नाजुक सी मिन्नतों का
दरबार है घर में,
क्या लूँ कि अभी
चीजों का अंबार है घर में।
 

कौन अधिक प्रिय है
मीठी तकरार है,
बेटे से सुकून है
कि बेटी से करार है।
 

नाराज़ है कोई
फिर आवाज़ है घर में,
रूठने मनाने का
रिवाज़ है घर में।
 

नित नए नाम से
पिटता ढिंढोरा है,
याद है किसी ने कहा
वो "चीनी का बोरा" है।
 

तू है नहीं मगर
तेरी पुकार है घर में,
तेरे बिना सूना
संसार है घर में।

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