मैं Shivam Kumar
मैं
Shivam Kumarमैं ही कल, मैं ही आज हूँ,
मैं महज एक नदी नहीं,
मैं उफनते सागर का सैलाब हूँ।
मैं मोम की एक लौ नहीं,
मैं धधकती आग का सार हूँ,
मैं हर दासता पर भार हूँ।
मैं एक नई सोच हूँ,
जिसका न कोई अंत
मैं वो विवेक हूँ।
आसमान की ऊँचाई मैं,
समुद्र की मैं गहराई हूँ,
मैं धैर्य का का प्रतीक,
मैं ऊर्जा का स्रोत हूँ।
टूटते सहारों का मैं आसार हूँ,
बुझते उजालों का मैं आधार हूँ,
मैं ही कल मैं ही आज हूँ...