निठल्लों की वाह वाही  Anupama Ravindra Singh Thakur

निठल्लों की वाह वाही

Anupama Ravindra Singh Thakur

साल भर निठल्ले बैठकर भी
वे वाह-वाही पा गए,
हम कोल्हु की बैल की तरह
बस काम में जुटे रहे।
कैसा कलयुग आ गया
यह सोच मुस्कुरा गए,
हंस चुग रहा है दाना
कौए मोती खा गए।
 

कलयुगी गीता
वे कुछ इस तरह बता गए,
अथक परिश्रम नहीं
बस दिखावा कीजिए,
क्योंकि जो दिखता है
बस वही चलता है,
यही नीति अपना कर ही
वे अधिकारियों को उल्लू बना गए,
साल भर निठल्ले बैठ कर भी
वे वाह वाही पा गए।
 

काम नहीं बस बातें बना गए
बातों के पुल बांध कर,
अपना प्रभाव जमा गए
साल भर खाली बैठकर।
दूसरों की हँसी उड़ा गए
यही नीति अपना कर ही,
अधिकारियों को खुश करा गए
साल भर निठल्ले बैठकर भी।
 

वे वाहवाही पा गए
दूसरों की बुराई कर,
खुद को महान बता गए
थोड़ी सी चमचागिरी कर
अपना सिक्का जमा गए।
परिश्रम करने वाला मूर्ख हैं
यह हम सबको जता गए,
साल भर निठल्ले बैठ कर भी
वे वाह-वाही पा गए।

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