पुराने मौसम से हुई जान पहचान फिर से  SANDEEP MENGHANI

पुराने मौसम से हुई जान पहचान फिर से

SANDEEP MENGHANI

एक पुराने मौसम से हुई जान पहचान फिर से,
अबकी बारिश में टपका है
मेरा पक्का मकान फिर से।
 

शीशे के दरवाज़े और खिड़कियों पे
दस्तक दे-दे के लौट जाती थी ये फुहारें,
इस बार मगर मुझे भिगोने का
किया है एहसान फिर से।
 

बर्तन, कपड़े, खिलोने और हौसला,
बहा लिए जा रहा है गलियों में बहता पानी,
चलो उठो, अब जमा करेंगे नया सामान फिर से।
 

एक पुराने मौसम से हुई जान पहचान फिर से,
अब की बारिश में टपका है
मेरा पक्का मकान फिर से।

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