ज़िन्दगी  Mithilesh Sharma

ज़िन्दगी

Mithilesh Sharma

ज़िन्दगी
तू पँछी सी है,
वो भी चंचल पँछी,
तू सुख हो या दुःख हो
तू गम हो या खुशी हो,
अनुपम आनन्द की अनुभूति में
विचरण खुले गगन में करती हो।
 

ज़िन्दगी
तू शतरंज सी है,
कभी शह तो कभी मात देती हो,
वजीर सा हो तुम,
चाल जैसी जो चले
ढल जाती हो उस तरह।
 

ज़िन्दगी
तू नदी सी है,
कैसी भी हो हालत धरा पर
तू निर्मल सा बहती है,
तू बह जाती खोद सुरंग
या चट्टानों में भी बहकर,
हर मुश्किल को सह कर
खुद राह बना लेती हो,
हर पल बस कल-कल कर
मधुर संगीत सुनाती रहती हो।
 

ज़िन्दगी
तू हवा सी है,
मदहोश सी,
मदमस्त सी,
पेड़ों की डाल से झूलती
फूलों के संग में खेलती,
घासों के लब को चूमती
आगे बढ़ती चली जाती है।
 

ज़िन्दगी
तू सफर सी है,
जिसमें मुसाफिर भी तू,
हमसफर भी तू,
मुकाम भी तू,
इस सफ़र में
ग़मों की बरसात भी तू,
खुशियाँ की महफ़िल भी तू,
मौत पर ख़त्म होने वाला
आख़री सफर भी तू है।

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