मन सन्यासी हो गया Garima Jain
मन सन्यासी हो गया
Garima Jainदेख प्याला शरबत का
पर पीकर घूंट ज़हर का
मन यह सन्यासी हो गया।
मिलावटी मिठाई सा प्यार
लागे गुड़ में लिपटा आचार,
पापड़ सा पका रिश्ता
क्षण में बिखरता देख,
मन सन्यासी हो गया।
साज सजावट मे देखे संसार
पर लागे जमा फीके पकवान,
खूब देखो रुपैया का रोब
पर कोई ना दिख्यो मन का बलवान,
ताश के पत्तों सा इंसान
पल में बदलता देख,
मन सन्यासी हो गया।
व्यस्त जीवन की माला फेरते
समय को सब मुट्ठी में रखते,
खोखली सी ज़रूरतें पायो
उसमें भी घना दिमाग लगायो,
सब बिना रस की जलेबी खावे
और हर कोई खुद को हलवाई जतावे,
राम जपता और रावण सा बनता देख,
मन सन्यासी हो गया।।
इंसान को इंसानियत से दूर भागता देख,
मन यह सन्यासी हो गया,
देख प्याला शरबत का
पर पीकर घूंट ज़हर का
मन यह सन्यासी हो गया।