किस्सा कुर्सी का Garima Jain
किस्सा कुर्सी का
Garima Jainयह कुर्सी का ही तो ज़ोर है
जो बनाता भाई को ही भाई से चोर है,
खुद ही कर सच्चाई का घोटाला
और मचाता इमानदारी का शोर है।
महाराज दौलत के राज में
प्रजा तो किसान है,
पर लाभ उठाता मंत्री
किया जिसने दौलतमंद पर एहसान है,
यह कुर्सी का ही तो ज़ोर है
फसल बोता तो कोई
और खाता कोई और है।
करके उम्मीदों का सौदा
जीता अरमानों भरा ताज है,
पाकर यह ऊँचा ओहदा
क्या किया तुमने कोई काज है?
यह कुर्सी का ही तो ज़ोर है
जो बनाता हर किसी को कमजोर है।
आजादी के इतने साल बाद भी
गरजती जुल्म की हुंकार है,
मायूस खड़ी गूंगी जनता
लगाती इंसाफ की भावभीनी पुकार है,
यह कुर्सी का ही तो ज़ोर है
जो चलने ना देता कानून का जोर है।
यह कैसा किस्सा कुर्सी का
जहाँ हर बार बदलती सरकार है,
नई सत्ता, नए चेहरे,
पर मुद्दों की वही पुरानी कतार है।