अर्पण RAHUL Chaudhary
अर्पण
RAHUL Chaudharyरक्त बिखरा जिस धरा पर
बसंत का श्रृंगार किया,
दाग सब आतंकियों के
नापाक जो सब धुल गया।
वीर वंश के नन्हे क़दमों
ना डगमगाना हारकर,
आहुति को ना बुझने देना
इनके गम में अश्रु बहाकर।
वीरपुत्र जो सो गए
भारत के आंचल में लिपटकर,
नव ऊर्जा को संचित कर गए
जन जन में, खुद अर्पित होकर।