हैं अजनबी इस देश में VIVEK ROUSHAN
हैं अजनबी इस देश में
VIVEK ROUSHANहैं अजनबी इस देश में
न जाने कितने हमारे जैसे,
जो ये जात-पात, धर्म-अधर्म
के बंधन से छुटकारा पाना चाहते हों,
न जाने कितने लोग होंगे जो
मज़हबी बँटवारों से छुटकारा पाना चाहते हों।
होंगे बहुत लोग
जिन्हें दूसरों की गरीबी,लाचारी,
आदमियों का आदमियों पर शोषण,
कभी जात के नाम पर शोषण,
तो कभी धर्म के नाम पर शोषण,
से चिढ़ आती होगी, गुस्सा आता होगा।
ये सब लोग बोलना चाहते होंगे,
बहुत हद तक शायद बोलते भी होंगे,
पर इनकी आवाज़ें कोई सुनता क्यों नहीं है?
कोई इनको पहचानता क्यों नहीं है ?
कोई इनके मन को टटोलता क्यों नहीं है ?
ऐसा इसलिए है क्या
कि जो लोग मज़हबी, जातीय शोषण
से छुटकारा पाना चाहते हों
वो सब लोग अलग-अलग हैं,
या इनकी आवाज़ों में वो गूँज नहीं है
जो नफरत और शोषण करने वाले लोगों
के कानों को फाड़ डाले।
या फिर इनकी आवाज़ों में वो जान नहीं है
जिसको सुनते ही नफरतपसन्द लोग
डर जाएँ, भयभीत हों जाएँ,
या फिर ऐसा है कि
इस मुल्क में उनकी आवाज़ें ज़्यादा हों गईं हैं
जो आदमी का आदमियों पर शोषण चाहते हों,
दो मज़हबों की लड़ाई चाहते हों,
खुद को राजा और दूसरों को गुलाम बनाना चाहते हों।
अगर ऐसा है तो शीघ्र ही
तरक्कीपसन्द, अमनपसन्द लोगों को
एकत्रित होना पड़ेगा,
अपनी आवाज़ों की गूंज को बढ़ाना पड़ेगा,
आपसी मतभेदों को भूलकर,
समाज में जात, धर्म, ऊंच-नीच के नाम पर
नफरत फैला रहे लोगों के खिलाफ एकजुट होना पड़ेगा।
भारत को एकजुट रखने के लिए लड़ना पड़ेगा,
तो उठो, जागो भारत के तरक्कीपसन्द लोगों
और अपने समाज के दुश्मनों से लड़ो,
और उनके नफरत भरे विचारों को
अपने प्यार, एकता, तरक्की के विचारों से मात दे दो,
और नफरत के कारोबार करने वाले लोगों को बता दो
कि उनकी नफरत से ज्यादा धार हमारी मोहब्बत में है।