बिखर गया घरोंदा Jyoti Khadgawat
बिखर गया घरोंदा
Jyoti Khadgawatकल एक पत्ती क्या
बिछड़ी अपने फूल से,
ख़ुशियों की लहरों ने
उसके साहिल पर टकराना छोड़ दिया,
कल से पहले मैं सुर्ख़ था
भँवरों के गुंजन में घिरा,
आज मैं मुरझाया हुआ
ख़ामोश हूँ,
पीला हूँ
डूबते सूरज की तरह।
मोह के धागों से बुना था
मैंने अपना ताना बाना,
आज बिखरे रिश्तों में उलझा हूँ
एक दस्तक की इंतज़ार में,
टकटकी लगाए
घंटों दरवाज़े की ओर देखता हूँ,
हज़ारों सवालों के जाल में
अपने अस्तित्व को ढूँढता हूँ।
यह बंधन ही सुंदरता थी मेरी
अब अधूरा मैं बेजान हूँ,
बाक़ी पत्तियॉं पूछें मुझसे,
मायूसी भरी घूरें मुझे,
क्या कहूँ कि क्यूँ तुम
हमें छोड़ गई
कैसे कहूँ कि तुमने घरोंदा
कोई और ढूँढ लिया है,
अपने ख़ून के रिश्तों को तुमने अपने
ख़ून के लिए छोड़ दिया है,
बचपन की यादों को तुमने
नए बचपन में अब ढूँढ लिया है।
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इस कविता के माध्यम से कवयित्री एक परिवार की कहानी कह रही है। इस कहानी में एक बेटी अपने घर को छोड़ के चली गई है। परिवार के बाक़ी लोग अब अधूरा सा महसूस कर रहे हैं और उसकी चिंता में व्याकुल हैं। इस कविता में घर का बड़ा अपने परिवार को बिखरता देख के दुखी है और सोच रहा है कि वो अपने बाक़ी परिवार को कैसे जोड़ के रखे।