आज़ाद हूँ Arpit Gupta
आज़ाद हूँ
Arpit Guptaमैं आज़ाद हूँ पर एक बन्धन सा है,
मेरे अंदर एक अजीब मन्थन सा है।
ज़िंदगी सुलझी है और उलझी भी है,
सुलझाने का कोई जादू मंतर सा है?
एक ऊँची उड़ान का परिंदा हूँ मैं,
ज़रूर कौए और चील में कुछ अंतर सा है।
कभी तो इंसान मैं भयभीत हूँ,
कभी मेरा अस्तित्व सिकंदर सा है।
सुबह तो एक ज़मीन बंजर हूँ मैं,
रात मेरा मन जन्तर-मन्तर सा है।
कभी तो एक हाथी गम्भीर सा,
कभी मेरा दिल चुलबुले बंदर सा है।