अंधकार से युद्ध Anjali Bhardwaj
अंधकार से युद्ध
Anjali Bhardwajजीवन विह्वल उठा,
धरा ये दहक उठी,
पावक पवन सी चल पड़ी,
अंधकार सूर्य सा होने लगा,
स्मृत सब विस्मृत होने लगा।
आयुध से सब बंटने लगे,
सब गृहों में ज्वाला जली,
अस्तित्व कुछ यूँ मिटने लगा,
लय में प्रलय होने लगी।
तभी
अचानक
एक नन्ही सी मछली
आशा किरणें दिखाने लगी,
दीप से दीप जलाने लगी,
नैया कहीं पर ढूंढने लगी,
फिर से जीवन बीज बोने लगी।
समुद्र में भयावह लहरें भी चलने लगी,
पर ना वो रूकी, ना वो झुकी,
अकेली ही वो चलने लगी,
कुछ दूरी पर वो जीतने लगी,
फिर साथ कुछ और भी गति में लगी,
ज्ञान लौ वो जलाने लगी,
जीवन सुचारू करने लगी।