भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा  Roshan Barnwal

भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा

Roshan Barnwal

क्या जादू था उसकी आवाज में,
क्या करिश्मा था उसकी हर बात में,
मिलता था सुकून उसको हर दफा देख कर,
पर न जाने क्या कमी थी मेरे विश्वास में।
मैंने सब कुछ छोड़ दिया देख कर भरोसा तेरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

शुरू में तो जैसे मैं फ़ना हो गया,
उसके हर दर्द की दवा हो गया,
और जब कर दिया न्यौछावर सब कुछ अपना,
तो न जाने क्यूँ तो शख्स मुझसे खफा हो गया।
रुधिर भी हो गया उसके इस जहर से हरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

पसंद है उसे प्रकृति की गोद,
चाँद की रौशनी और हवाओं का बहना,
मगर न जाने क्यूँ उसने ये भी सीख लिया है,
दूसरों पर निर्भर रहना।
पर क्यूँ, हवा तो किसी के भरोसे नहीं बहती,
और चाँद की चाँदनी भी बिना किसी के ही बिखरती।
कोई समझा नहीं सकता उसे ये राज गहरा,
भूल नहीं पा रहा मई अब तक वो चेहरा।
 

करना चाहतें हैं सब अपने जनक जननी की सेवा,
निःसंदेह जगत का कोई उत्तम कार्य नहीं है इसके अलावा।
पर भटक जातें हैं लोग दिखावे की राहों में,
भूल जातें हैं अपना लक्ष्य, गिर कर अजनबी की बाँहों में।
छा जाता है समझ पर अज्ञान का घना कुहरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

की थी खता मैंने अपने आप से करके उससे दोस्ती,
मेरी इस हरकत ने बना दिया था उसे बहुत बड़ी हस्ती,
एक बात रखना अपने जेहन में हमेशा,
खुद को छोड़ कर मत करना किसी पे हद से ज्यादा भरोसा।
फिर भी न जाने क्यूँ रह रहा हर पल मुझ पर उसकी यादों का पहरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

झिझक को रख कर ताख पर, खोल दिया मैंने अपने दिल का राज,
सोचा एक जैसे हैं हम दोनों, होगा उसे न कोई एतराज।
देख कर मेरी ये कमजोरी करने लगी वो अपने आप पर गुरुर,
उसका ये रूप देख कर टूट सा गया मैं, था मेरा क्या कुसूर ?
आँखे जमने लगीं आ उनपर दर्द का सेहरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

डूब गया मैं उस गम से भरे तालाब में,
सिसकता रहा हर पल अपनी ही हालत पे।
नई ख़ुशी की तलाश में दर-दर भटकता रहा,
हर कदम पर बार-बार एक ही नादानी करता गया।
शायद ले रही थी ये किस्मत इम्तेहान मेरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

आ गया गुस्सा फिर मुझे इस जहाँ को बनाने वाले पर,
चीखा मैं, नहीं हो रहा बर्दाश्त, कोई तो चमत्कार कर।
हमेशा वही करता है वो, जो सही है हमारे लिए,
भूल गया था मैं, तभी शायद उसकी मर्जी को मैंने गलत कहे।
खा कर बदइल्म के पत्ते, हो गया मैं कड़वाहट से भरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

रो पड़ा मैं जमीं पर गिर कर, आँसू फिसल पड़े,
चलो अच्छा ही था ये कि सारे दर्द पानी बनकर निकल गए।
इस मासूम सी दुनिया के स्वार्थीपन को देख मैं जड़ने लगा,
कभी उसे तो कभी खुद को बेवज़ह कोसने लगा।
तभी अचानक एक रौशनी से कर दिया मेरा वो पल सुनहरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

छोड़ दिया मैंने उसके नाम का सहारा,
उड़ने लगा आत्मबल के पंखों से मेरी मंज़िल ने मुझे पुकारा।
देख कर आगे बढ़ते मेरे कदम न जाने क्या सूझा उसे,
पास आकर मेरे कानो में उसने जादू से भरे वो तीन शब्द कहे।
अपनी सफलता के धुन में जैसे मैं हो गया बहरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।
 

क्यूँ इतनी बुरी है ये दुनिया,
चालें चल कर क्यूँ खींच लेती है ये, खुशियों की घड़ियाँ।
सोच कर इतना खुल गई मेरी नींद और टूट गया वो सपना,
पर शायद अब तक अंदाजा लग चुका था की कौन है इस जहाँ में अपना।
सोच कर ये असलियत मेरी आँखों का दर्द गालों पर बिखरा,
भूल नहीं पा रहा मैं अब तक वो चेहरा।

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