चलना था सीधा SANTOSH GUPTA
चलना था सीधा
SANTOSH GUPTAचलना था सीधा पर रास्ते टेढ़े थे,
सच्चाई की राहों पर मिले काँटों के घेरे थे।
उलझता गया मैं नेकी के जाल में,
लड़खड़ाता गया मैं सीढ़ी ही चाल में।
सम्भावनाएँ चलने की तब बढ़ी,
डाला कुछ काला जब दाल में।
कायदे जो सीखे थे पढ़ के किताबों से,
कमज़ोर से हारे थे ज़िन्दगी की बातों से।
चाहकर भी जो सही चल न सके
वो भटके कदम मेरे थे,
जो अपने ही दिल की सुन न सके
वो बहके मन मेरे थे।
सही गलत की कश्मकश में
अपने उसूलों को कभी तोड़े तो कभी जोड़े थे,
चलना था सीधा पर रास्ते टेढ़े थे।
चलना था सीधा पर रास्ते टेढ़े थे,
इरादे नेक थे पर उपाय पेचीदे थे।
करने निकला जब गलतियाँ
तो मिलते सीधे तरीके थे,
नियमों ने नियमों को तोड़ा है
गलत राहों ने सही मंज़िलों को जोड़ा है।
विधियों के पाश ने विधियों को जकड़ा है,
रीतियों को माना तो उद्देश्य अकड़ा है।
चलने को राहों पर हुनर कई सीखे थे,
जब निकले तो क़दमों के कुछ और ही सलीके थे।
झूठ अधिक और सच थोड़े थे,
चलना था सीधा पर रास्ते टेढे़ थे।