सुलगते अरमाँ  JASPAL SINGH

सुलगते अरमाँ

JASPAL SINGH

सुलगते अरमाँ से शमा जला के चलता हूँ,
मैं अपनी राह को आसाँ बना के चलता हूँ।
 

कोई गर तोड़ जाए दिल तो गम नहीं करता,
जोड़ फिर लेता हूँ टुकड़े उठा के चलता हूँ।
 

कभी गहराई को रिश्तों की नाप लेता हूँ,
कभी मीलों वीरां लम्हों में जा के चलता हूँ।
 

बूंद पानी की दूर तक ना मिले फिक्र नहीं,
भरा रखता हूँ गला आँसू बहा के चलता हूँ।
 

दिल के जख्मों से जरा खून अब नहीं बहता,
कड़वी बातों को घावों पे लगा के चलता हूँ।
 

मन को करता नहीं भारी जहाँ की बातों से,
बोझ रखता नहीं सब कुछ गवाँ के चलता हूँ।
 

खुद को खुश करने कुछ आदतें सी डाली हैं,
दर्द सह लेता हूँ गम को दबा के चलता हूँ।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1022
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com