मैं सच हूँ SANTOSH GUPTA
मैं सच हूँ
SANTOSH GUPTAमैं गुमशुदा हूँ, मैं लापता हूँ,
शायद मुझे सब नहीं जानते,
पर मैं सबको जानता हूँ।
मुझसे कहाँ छिपा है कोई,
सबके असली चेहरे को
मैं पहचानता हूँ।
मेरी प्रतिलिपि बिकती है बाजार में,
बहुत तरक्की है मेरे व्यापार में,
खुद के मूल्य को मैं नहीं विचारता हूँ।
मैं शांत हूँ, मैं मौन हूँ,
मैं गुमशुदा, मैं कौन हूँ,
खुद की तलाश में हारता हूँ।
गिरता हूँ मैं बार-बार,
चल पाता हूँ कभी कभार,
मैं खुद ही खुद को संभालता हूँ।
बहरी है ये दुनिया
सुन नहीं पाती मुझे,
मैं अक्सर उन्हें पुकारता हूँ।
मैं होकर भी नहीं हूँ,
मैं दिखता क्यों नहीं हूँ,
सच्चाई के अंधो धिक्कारता हूँ।
सिद्ध करते हैं मुझे,
असिद्ध करते हैं मुझे,
न्याय के मंच पर मैं असमानता हूँ।
मैं अचूक हूँ,
पर मूक हूँ,
झूठ की तरह नहीं दहाड़ता हूँ।
मैं सच्चे दिल का विश्वास हूँ,
मैं बुराई से निराश हूँ,
मैं मन की विशालता हूँ।
अपने अंतरमन से बोलो,
अपनी आत्मा को टटोलो,
तुम्हारे दिलों की मैं दास्तां हूँ।