बँटते हिंदुस्तान  JASPAL SINGH

बँटते हिंदुस्तान

JASPAL SINGH

आज जलते हुए मकां देखे,
फिर गुबारों के आसमां देखे।
 

जिस जहर का कोई इलाज नहीं,
उगलते उसको बद-जुबां देखे।
 

पीठ घायल है जिनकी तीरों से,
उनके हाथों में ही कमाँ देखे।
 

अपना गुलशन थमा के चोरों को,
रोते किस्मत पे बागबां देखे।
 

गरीब झोपड़े फिर होते हुए,
उन्ही महलों पे मेहरबां देखे।
 

फिर से मैंने किसी के हाथों से,
बंटते धर्मों में हिंदोस्तां देखे।

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