आराध्या Anupama Ravindra Singh Thakur
आराध्या
Anupama Ravindra Singh Thakurसंसार पूजता है विद्या की देवी माँ सरस्वती को,
कुमकुम अक्षदा पुष्प चढ़ाकर
भजता है हर क्षण उनको,
धन की हो अगर कामना
तो माँ लक्ष्मी की करता है वह आराधना।
शक्ति की लालसा से
माँ दुर्गा की करता है उपासना,
परंतु अपने ही घर में
स्त्री की करता है वह अवहेलना।
निरर्थक है अदृश्य देवियों को पूजना,
इस धरातल पर हर घर में है
वास्तविक देवियों का आशियना,
प्रत्येक स्त्री को लक्ष्मी समझकर
शक्तिशाली उसे है बनाना।
प्रत्येक स्त्री को सरस्वती जानकर
शिक्षा उसे है दिलाना,
प्रत्येक स्त्री दुर्गा है
इसलिए कोख में ही उसे ना मारना,
रानी लक्ष्मी बाई के समान बहादुर है उन्हें बनाना।
रानी पद्मावती सी शूरवीर हैं
उन्हें बनाना शिक्षा का आभूषण,
पहना कर समाज में रुतबा है उसका बढ़ाना।
वह केवल भोग्या है
इस दुर्भावना को है हटाना,
राष्ट्र की प्रगति की सूत्रधार है स्त्री,
हम सबको है यह स्वीकारना।
बलात्कार, उत्पीड़न, मानसिक शोषण
जैसे दुष्कर्मों को भारत से है हटाना,
करुणा, प्रज्ञा, तेजस्विता, स्नेहमयी,
जीवनदायिनी, धनवान, ज्ञानवान
कोई और अदृश्य देवी नहीं,
पर घर को सँजोने वाली बहू,
बेटी, माता, कन्या इन्हीं को हमें है पूजना।