मोहब्बत के सफर में SANTOSH GUPTA
मोहब्बत के सफर में
SANTOSH GUPTAमोहब्बत के सफ़र में मंज़िल की गुहार कैसी है,
कि कशिश तो अधूरेपन में है,
मुक्कमल होने की पुकार कैसी है।
इश्क़ के दरिया में डूब जाना ही उल्फ़त है,
किनारे की तलाश में यह तैर कैसी है।
मन की नज़रों से जो महसूस हो मोहब्बत,
खुले आँखों से दीदार कैसी है।
ये इश्क़ तो निगाहों की जुबा़न होती है,
ये मोहब्बत तो दिलों का पैगाम होती है।
इज़हार-ए-मोहब्बत जो निगाहों से हो,
लफ़्ज़ों से इकरार यह कैसी है।
मोहब्बत तो वह है जो रूहों को मिला दे
शरीक-ए-जिस्म की दरकार यह कैसी है।