तेरे बिन JASPAL SINGH
तेरे बिन
JASPAL SINGHतेरे बिन गुज़रते बारों से क्या,
याद बन चुभ रहे खारों से क्या।
निगाहों में खिजां का मौसम है,
जिस्म को सैर-ए-बहारों से क्या।
दिल की हर चाह तो अधूरी है,
नज़र को टूटते तारों से क्या।
जड़ों से खा लिया है दीमक ने,
शजर को चल रहे आरों से क्या।
तूफान-ए-बहर से बचा ना सके,
ऐसे बे-कार किनारों से क्या।
दिल तो प्यासा रहा मुहब्बत में,
बे-पनाह बह रहे धारों से क्या।
बारों - समय
खारों - काँटों
खिजां - पतझड़
शजर-पेड़
तूफान-ए-बहर - समंदर का तूफान