शिक्षा  Anupama Ravindra Singh Thakur

शिक्षा

Anupama Ravindra Singh Thakur

शिक्षा अब एक व्यापार हो गया,
धन कमाने का सबसे उत्तम
हथियार हो गया।
 

पूंजीपतियों के लिए
शिक्षा में निवेश
एक बाजार हो गया,
डिग्रियाँ खरीदना और बेचना
अब एक कारोबार हो गया।
 

गली, नुक्कड़ हर मोहल्ले में
शिक्षा के ठेकेदारों का
दरबार हो गया,
तरीका उचित हो या अनुचित
प्रशासक, डॉक्टर, इंजीनियर बनना
हर किसी का ख्वाब हो गया।
 

भारी-भरकम शुल्क देकर
डॉक्टर बनना
नोट छापने का व्यापार हो गया,
पाश्चात्य शिक्षा व्यवस्था का
अंधानुकरण करना
अपना रिवाज हो गया।
 

निजी विद्यालयों की
बाहरी चमक-दमक,
परंतु अदर का खोखलापन
ही शिक्षा का मंदिर हो गया,
केवल अधिक से अधिक
परीक्षा में अंक पाना
हर किसी का ध्येय हो गया।
 

अधिक धन लाभ कैसे,
किस से और आसानी से होगा
यही शिक्षा का उद्देश हो गया,
समर्पण भाव वाले
योग्यतम शिक्षकों का
अभाव हो गया।
 

शिक्षक अब
केवल वेतनभोगी नौकर हो गया,
संकुचित मनोवृत्ति का संक्रमण हो गया।
व्यापारिक मनोवृति सब पर
हावी हो गई,
शिक्षा अब केवल
कामचलाऊ वस्तु हो गई।

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