नवभारत  RAHUL Chaudhary

नवभारत

RAHUL Chaudhary

शोर सुना नभ जल थल
प्राचीन सने शौर्यकथा का,
ठोक ताल डटकर निडर
तूफान उठा हुँकार का ।
 

लेकर जोश असीमित हृदय में,
बढ़ रहा भारत समृद्धि पथ पर।
 

मचल रही ज्वाला विध्वंसी
कर संहार दमन कायम की,
है तैयार प्रलय ढाने को
शत्रु को नतमस्तक करने की।
 

व्याकुल व्यथित हृदय से
रहे निहार जग बैरी छिपकर,
ईर्ष्या वश होकर ये आतुर
पथ बाधित करने को तत्पर।
 

छाती चौड़ी कर प्रतिउत्तर को
तत्पर सीमा पर भारत, शत्रु की।
 

लेकर प्रण सर शत्रु कलम करने की,
जाग रहा भारत सेवा को, भूमि की।
 

धरती आकाश देख छानकर
चला छानने इनसे भी ऊपर,
ग्रह दशा और चाल पढ़ाकर
पहुँच गए नव धरा के खातिर।
 

अंतरिक्ष में गोते लगाने
रच रहा आयाम भारत, नव भारत की।

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