अब नहीं मिलता इंसा किसी से भी प्यार से  VIVEK ROUSHAN

अब नहीं मिलता इंसा किसी से भी प्यार से

VIVEK ROUSHAN

अब नहीं मिलता है इंसा किसी से भी प्यार से,
खुद को बाँध लिया है सब ने इक दय्यार से।
 

लिखता हूँ हकीकत जब मैं कलम की धार से,
खूं हीं खूं निकलता है जिस्म के आर-पार से।
 

झूठ का साथी बने औ सच को मरता छोड़ दे,
बू सी आती है गुलामी की ऐसे फनकार से।
 

आदमी ही आदमी के ख़ून का प्यासा बना है,
क्या मिलेगा आदमी को ऐसे इस संसार से।
 

बन्द कर के आवाज़ें हमारा हौसला तोड़ दोगे,
हम नहीं डरते ऐसे दमनकारी सरकार से।

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