समय और प्रेम DEVENDRA PRATAP VERMA
समय और प्रेम
DEVENDRA PRATAP VERMAबदल रहा है घटनाक्रम
वक़्त कहे तुझे भूले हम,
पाकर खोया है एक दिन
फिर से पा जाओगे तुम।
दुख की स्मृतियों से बाहर
सुख की कलियों में देखो,
यहीं कहीं वो आस पास है
हरे रहो मत तन से सूखो।
कण-कण में उसका सुवास है
हृदय में रहती है वो हरदम,
जिसकी काया में तुम हो गुम
वो ही है तेरी काव्य कुसुम।
पाँव लटकाए बैठी चांद पर
जितनी चाहे बात करो,
सारी रात तुम्हारी है
शब्दों से संवाद करो।
रूठे तो मनाओ तुम
गीतों में बसाओ तुम,
नित्य निरंतर आनंदित हो
खुद में उसको पाओ तुम।
लाख हवा के झोंके आएँ
मंद मधुर तन मन महकाए,
हृदय कुंज जो आच्छादित है
नहीं कोई खाली कर पाए।
जब प्रेम पृष्ठ पर चले कलम
तब वह मुस्कायेगी अनुपम,
जब दीप जलेंगे गीतों के
तो खो जाएगा पथ का तम।
अपने विचार साझा करें
कहते हैं वक़्त हर बड़े ग़म का मरहम होता है। जब कोई साथ छोड़कर जाता है तो यूँ लगता है जैसे सब कुछ खत्म हो गया है। कहीं कोई उम्मीद नहीं है। व्यक्ति जाने वाले की याद में विषाद ग्रस्त हो जाता है। किन्तु जैसे-जैसे समय बीतता जाता है नई सम्भावनाएँ द्वार खटखटाती हैं और व्यक्ति की पीड़ा कम होने लगती है। प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि अपनी पीड़ा को प्रेम की सुंदर स्मृतियों के सहारे काव्य का सृजन कर यादों को सहेजना चाहता है।