बाबरी-मंदिर Himanshu Sharma
बाबरी-मंदिर
Himanshu Sharmaतमाम शहर में ये चर्चा आम है,
बाबरी मस्जिद के पीछे बैठा राम है।
सियासतदार हर बार याद दिलाएँगे,
कुछ ट्रेनें जलाएँगे, कुछ घर जलाएँगे,
पर ना चुल्हा जला बस्ती में,
ना किसी को मिला काम है।
तुम्हें खबर लगी, बाबरी मस्ज़िद के पीछे बैठा राम है।
बरसों से रोज़ों पर है शय्यद
उसका मंदिर की पोशाकों का काम है,
घर तो राजू का भी नहीं चलता,
उसका इबादत वाली चादर का काम है।
तुम्हें खबर लगी, बाबरी मस्ज़िद के पीछे बैठा राम है।
कल केसरिया ने हरे से कहा,
जब तक ये ढाँचा है, दुरुस्ती है,
बन गया तो जीना हराम है।
तुम्हे खबर लगी, बाबरी मस्ज़िद के पीछे बैठा राम है,
बाबरी मस्ज़िद के पीछे बैठा राम है।
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बाबरी मस्जिद और राम मंदिर के झगड़ों के बीच एक स्थिति की कल्पना है। लोग किस स्थिती में होंगे। एक ही समाज के दोनों हिस्से बिना विकास के सिर्फ धर्म के नाम पर बरगलाए जा रहे हैं। न तो सरकार ना ही विपक्ष चाहता है कुछ। बिना जाति धर्म का नाम लिखे एक दर्द है यह कविता।