कृष्ण गीत  Himanshu Sharma

कृष्ण गीत

Himanshu Sharma

कृष्ण के अपार प्रेम को ही साधते रहे,
कंस, पाल, पांडवों को कृष्ण तारते रहे। (शिशुपाल)
 

रुक्मणि के भाग्य में महाराज कृष्ण आ गए,
राधा जी को कान्हा अपने रास सब दिखा गए।
 

कृष्ण को मिला न सुख, त्याग भोगते रहे,
कोठरी में, वन में कहीं अश्रु पोंछते रहे।
 

कौन सच है झूठ कौन, लोग सोचते रहे,
धर्म युद्ध में कृष्ण रण भी छोड़के गए।
 

राधा को वो तुम मिले आप पर ना हो सके,
रुक्मणी के आप थे तुम कभी ना हो सके। (प्रेम देखे आप और तुम में )
 

यात्रा शुरू न हुई फिर भी राधा जीते है,
रुक्मणी के संग है पर हार उनपे बीते है।
 

जिसे कभी मिले न कृष, युगों से वो उसी के हैं,
संग जिसके वो रहे सदा, वो ही उन्हीं को ढूंढे है।
 

कृष्ण ये सिखा गए कि पाना प्रेम है नहीं,
प्रेम कर के छोड़ दो रहेगा वो सदा वही।
 

मीरा ने किया है प्रेम कृष्ण भी उसी के हैं,
जिसने भी किया था प्रेम, कृष्ण बस उसी के हैं।
 

माँ बाप छूटे, मित्र छूटे, सखी भी संग थी नहीं,
यशोदा छूटी, नंद छूटे, गोकुल भी संग है नहीं।
 

सब कुछ छूटता रहा, कृष्ण त्याग भोगते रहे,
ईश्वर बने मनुष्य और आनंद सोचते रहे।
 

सभी चला गया मगर, सदा ही कृष्ण खुश रहे,
आनंद की परिधियों में खुद को घोलते रहे।
 

हर घड़ी मनुष्यता की नींव खोदते रहे,
कृष्ण सदा प्रेम थे बस प्रेम सोचते रहे।

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