क्या हो तुम  Shivam Shinde

क्या हो तुम

Shivam Shinde

​​​​​​तुम मनभावन उस मौसम सी,
घनघोर घटा का है काजल,
तुम उड़ती मस्त हवाओं सी,
मदमस्त हवा तेरा है आँचल।
 

कोयल की मीठी बोली सी
बोले तो बरस जाए बादल,
लहराती हुई एक तितली सी
प्यारा सा चंचल तेरा मन।
 

तुम उस कोहरे की धूप सी हो
है देख जिसे खिलता है मन,
तुम शाम के ठंडे झोंके सी
तन मन को करता जो शीतल।
 

तुम शहद की मीठी प्याली सी,
तुम सुंदर-मधुर निराली सी,
हाँ तेरे यह उपहार है सब,
पर तुम भी नहीं कुदरत से कम।
 

गर्मी की धूप में छाँव सी तुम,
है सुकून मिले जिसको पाकर,
तुम झील के निर्मल पानी सी,
एक बूंद हृदय को कर दे तर।
 

संगीत के कोमल स्वर सी तुम,
वीणा की तान मधुर सी तुम,
दिन में दिखते एक स्वप्न सी हो,
सबसे सुंदर मुस्कान सी तुम।
 

सागर की नीले दर्पण में
उस चांद का वह प्रतिबिंब हो तुम,
रातों के बढ़ते साए में
मोती सा चमकता नीर हो तुम।
 

बरखा में बिखरती मोहक सी
चितचोर घटा रंगीन हो तुम,
हर मन जिसको पाना चाहे,
बहती नदिया का तीर हो तुम।

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