ज़िन्दगी - एक पहलू Mohanjeet Kukreja
ज़िन्दगी - एक पहलू
Mohanjeet Kukrejaलाल-बत्ती पर
अंधे भिखारी के हाथ में
थमा... उसके पेट सा
बिल्कुल ख़ाली कटोरा...
पत्थर तोड़ते मज़दूरों
के सख़्त हाथों पर
उनकी क़िस्मत की बजाये
छालों की लकीरें...
फ़ुटपाथ पर
कड़ाके की ठण्ड में
अधनंगे सोते जिस्मों पर
ठिठुरन का लिहाफ़...
बरसात में
कच्चे मकान की
छत की वीरान आँखों से
अविरल टपकते आँसुओं की बूंदें...
घर में चूल्हे की जगह
ग़रीब और मासूम से
बच्चों के पेट में धधकती
भूख-प्यास की आग...
अभावों से जूझते
किसी बेबस-लाचार से पूछो -
ज़िन्दगी क्या है?
तो समझ पाओ शायद...!!