वो रूठा है,वो अब उठेगा नहीं YUGESH KUMAR
वो रूठा है,वो अब उठेगा नहीं
YUGESH KUMARवो रूठा है, वो अब उठेगा नहीं,
मिट्टी का पुतला, आँसुओं से सींचूँ,
बिखरा ऐसा, वो अब जुटेगा नहीं।
चीख माँ की बर्दाश्त न कर सकूँ,
उसने बंद कर लिए कान, वो अब सुनेगा नहीं।
मैं चीखा भी, आँखें उनकी खुली नहीं,
जिसने मेरी माँ को परिणीता लिखा था,
वो दिखता अब भी वैसा था, बस स्याही नहीं।
बिखर पड़ी जब वो, उसे समेटना था,
पर वो लेटा रहा, हार गया था, उठा नहीं।
मैंने झकझोरा, उन्हें खूब पुकारा,
एक कटु सत्य था, उन्होंने झुठलाया नहीं,
जब नीर आँखों से उतर कर चीरती थी मुझे,
मैं देख माँ को स्तब्ध था, रोया नहीं,
वादा जन्मों का जो तोड़ कर वो चला,
चीत्कार था, उनका ब्रह्मांड था, अब कोई नहीं।
माँ की पीड़ा देखकर जो भय हुआ
मैं बोलता हूँ रोकर भी क्यूँ रोया नहीं,
संचित करूँ पिता को या माता मेरी
ढाढस की उसे थी जरूरत आँसू नहीं।
अंक में लेकर उन्हें मैं कुछ बुदबुदाता,
वो रोई ऐसे जैसे कभी रोई नहीं,
बेकार आँसू पोछती, कब उठेंगे झकझोरती,
प्रश्न थे, कहता मैं क्या, मौन था, कोई उत्तर नहीं।