भगत सिंह  YUGESH KUMAR

भगत सिंह

YUGESH KUMAR

आँखों में खून मेरे चढ़ आया था
सैलाब हृदय में आया था,
जब लाशों के चीथड़ों में
जलियाँवाला बाग़ उजड़ा पाया था।
 

जब चीख उठी बेबस धरती
सौ कूख लिए हर एक अर्थी,
बचपन में बचपना छोड़ आया
मैं इंकलाब घर ले आया।
 

बाप-चाचा थे गजब अनूठे
निज घर देशभक्ति अंकुर फूटे,
बचपन में ही छोड़ क्रीड़ा
मैं निकला किरपान उठा।
 

अपनों में तलवार जब छूटेगा
सरदार कहाँ चुप बैठेगा,
तिल-तिल मरती भारत माता
नास्तिक से और न कोई पूजा जाता।
 

रक्तपात मुझे कुछ प्रिय न था
शमशीर उठाऊँगा ये निर्दिष्ट न था,
जब असहयोग से सहयोग छूटेगा
अहिंसा पर कभी विश्वास तो टूटेगा।
 

दुनिया ये बिल्कुल नीरस है
आज़ादी से बड़ा क्या परम-सुख है,
वो कहते मुझसे शादी को
मैं ब्याह चुका आज़ादी को।
 

जब एक बूढ़े पर लाठियाँ चल उठी
पता चला अहिंसा तब रूठी,
आँखों में अंगार लिए
मैं चला भीषण हाहाकार लिए।
 

ये हृदय अग्नि तब शिथिल होगी
स्कॉट की छाती में मेरी गोली होगी,
एहसास हो जाए फिरंगी को
वक़्त नहीं लगता इमारत ढहने को।
 

जब निरीह का निर्मम शोषण होता
जब चारों ओर क्रन्दन होता,
और हिंसा से जब आँख खुले
धर्म वही सबसे पहले।
 

आखिर मुझको एहसास हुआ
भगत एक कितना खास हुआ,
जब हर गली भगत गर घूमेंगे
अंग्रेज़ भाग देश को छोड़ेंगे।
 

मन में न था कोई संशय
लाना था मुझको एक प्रलय,
संसद में बम जब फूटेगा
आवाज़ देश में गूँजेगा।
 

जैसे बादल के छँटने पर
सूरज बस तेज़ दमकता है,
वैसे बम के धुएँ के हटने पर
इंकलाब का शोर गरजता है।
 

जानता था परिणाम क्या होगा
ऐसी मृत्यु से गुमनाम न होगा,
जब भगत शहीद कहलाएगा
क्या लोगों में उबाल न आएगा।
 

अब देख भँवर क्या आएगा
मृत्यु क्या मुझको दहलाएगा,
सतलज में फेंका मेरा हर एक टुकड़ा
बनकर निकलेगा एक एक शोला।
 

भारत माँ से बस ये विनती होगी
कि रंगा रहे मेरा ये बासन्ती चोला।

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